Saturday 19 February 2011

हिन्दू आतंकवादी के नाम एक पत्र

जब जनता के पास सुबह उठते हीं साबुन से लेकर रात में मच्छर मारने के लिए उपल्ब्ध उत्पादों के लिए अनेक विकल्प उपलब्ध हैं तो फिर आतंकवाद के मामले में इस्लामिक आतंकवाद का एकाधिकार कई लोगों को नागवार गुज़र रहा था। अगर मीडिया और अंवेषण संस्थाओं की बात मानी जाए तो अब जनता के पास मौत के लिए एक और विकल्प उपलब्ध हो गया है: हिन्दू आतंकवाद । इसकी जड़े कितनी गहरी हैं और इसके लिए इस्लामिक आतंकवाद की तरह के किसी सिंचाई प्रणाली का पानी इस्तेमाल हो रहा है या जगह जगह गड्ढों मे जमा पानी का, यह अभी प्रमाणिक रूप से तय नहीं हो पाया है। जिस प्रकार से इस्लामी आतंकी ज़िहाद जैसे पवित्र शब्द और कुरान के प्रेम से ओतप्रोत आयतों का अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ कर मतलब निकालते हैं वैसा हश्र गीता के श्लोकों के साथ करने में ये हिन्दू आतंकवादी अभी तक सफल नहीं हो पाए हैं। परंतु अगर आप गीता के प्रारम्भिक अध्यायों को देखें तो थोड़े बहुत झूठ एवं चालबाज़ी के साथ ये लोग भी उसका इस्तेमाल अपने मतलब के लिए कर सकते हैं। यह अत्यंत चिंताजनक है कि अगली पंक्ति के इस्लामी आतंकियों में से अधिकतर गरीब और मज़बूर परिवार से है पर अब तक जो नाम हिन्दू आतंकियों के आए हैं वे सभी सुखी सम्पन्न परिवार से हैं एवं इसे इस्लामी आतंकवाद के समाधान के रूप में एवं देशभक्ति से जोड़ कर देखते हैं। इससे पहले कि सम्प्रदायिकता ,जातिवाद, भ्रष्टाचार एवं ऐसे हीं अनगिनत घावों को झेल रहे युवा बेरोज़गारों के पास नक्सलवाद के साथ साथ रोजगार का एक और साधन उपलब्ध हो जाए उन्हें समझाना बुझाना होगा और बताना होगा कि सीमापार से आयातित आतंकवादियों और तथाकथित हिन्दू आतंकवादियों में कोई फर्क नहीं है। इसी चिंता के साथ मैंने एक पत्र लिखा है जो इस ब्लॉग के माध्यम से उस सिरफिरे तक पहुँचाना चाहता हूँ जो अपने को ‘देशभक्त’ हत्यारा साबित करने पर तुला हुआ है।

मेरे दयनीय भटके हुए भाई,
वन्दे मातरम। सुना है कि समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद और अजमेर में खून तुमने हीं बहाया है? अगर यह बात गलत है तो माफ करना पर अगर सही है तो एक देशभक्त भारतीय होने के नाते मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ, उम्मीद है कि तुम सुनोगे। पर सबसे पहले एक बात साफ कर दूँ कि मैं किसी भी धार्मिक अथवा राजनैतिक संगठन का हिस्सा नहीं हूँ अत: मेरी बातों के लिए सिर्फ मैं और मेरा ज़मीर जिम्मेदार है। अगर समझने में तकलीफ हो तो टिप्पणी के माध्यम से स्पष्टीकरण माँग सकते हो।
क्या सोंच कर तुमने इस प्रकार का कदम उठाने की सोंची? तुम्हे क्या लगा कि इस प्रकार बदले की कार्यवाई से इस्लामी आतंकवादी डर जाएँगे? मेरे भाई उन्हें क्या फर्क पड़ता है अगर हिन्दुस्तान के सारे मुस्लिम मर जाएँ। उनकी लड़ाई भारतीय हिन्दुओं से नहीं है बल्की भारतीयों से है। उनके लिए हर भारतीय काफ़िर है और हरेक का कत्ल करना ज़िहाद।
अगर तुम भारतीयों के कत्ल से व्यथित हो तो इसके बदले में कुछ और भारतीयों का कत्ल करना कहाँ की बुद्धिमानी है। जब भारतीय संस्कृति ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ सिखाता है तो कम से कम अपने हीं देश के लोगों की हत्या करना भारतीयता तो कदापि नहीं हो सकता।
अगर तुम पाक अधिकृत काश्मीर जाकर उन हत्यारों के आकाओं को मार देते तो फिर अनगिनत भारतीयों की जान बचाने के लिए मैं तुम्हें देशभक्त मान सकता था।
अगर तुम उन अनगिनत आतंकवादियों के खिलाफ सबूत इकट्ठा कर उसे मिडिया के माध्यम से पुलिस तक पहुँचाते या फिर उनकी साज़िश को नाकाम करने में किसी प्रकार से काम आ जाते तो मैं तुम्हें अवश्य देशभक्त कहता।
अगर तुम लाखों भ्रष्ट भारतीयों को भ्रष्टाचार छोड़ने पर मज़बूर कर सकते तो भारत और भारतीयों को लूटने से बचाने के लिए मैं तुम्हें जरूर देशभक्त मानता।
अगर तुम उन अहसान फ़रामोश बेटों को अपने वृद्ध माता पिता को वृद्धाश्रमों से ससम्मान अपने पास रखने को मज़बूर कर सकते तो मैं तुम्हें देशभक्त मानता। आखिर जो हाड़ माँस की माँ को प्यार नहीं कर सकता वह इस मिट्टी की गूँगी धरती से प्यार कैसे कर सकता है?
अगर तुम लाखों बाल मज़दूरों की पढ़ाई सुनिश्चित कर सकते तो भारत का भविष्य उज्जवल करने के लिए मैं तुम्हें अवश्य देशभक्त मानता।
सूचि बड़ी लम्बी है, पर अफ़सोस है कि नफ़रत ने तुम्हे अन्धा कर दिया है। तुम्हें इस लम्बी सूचि के किसी भी रास्ते की बज़ाए हत्या करना उचित लगा। ईश्वर तुम्हें सदबुद्धि दे।

तुम्हारा शुभचिंतक
MARCH

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