Tuesday 28 January 2014

भ्रष्टाचारियों की आँखों का तारा : Contract Employment in Government Jobs

कॉंट्रैक्टरी प्रथा का जन्म और पालन पोषण भ्रष्टाचार की कोख से हुआ है। पहले जब प्रतियोगी परीक्षाओं की व्यवस्था नहीं थी तब सरकारी नौकरियों के लिए चयन में किस तरह से भाई भतीजावाद, भ्रष्टाचार और जातिवाद का नंगा नाच होता था यह किसी से छुपा नहीं है।
समय के साथ जब चपरासी से ले कर सभी छोटे बड़े पदों के लिए पारदर्शी प्रतियोगिता परीक्षाओं का प्रयोग होने लगा तब न केवल इन अफसरों के पेट पर लात पड़ गई बल्की कार्यालयी माहौल में भी कई आमूल-चूल परिवर्तन हुए इन्हीं परिवर्तनों का बेड़ा गर्क करने की बहुत बड़ी साजिश है कॉंट्रैक्टरी प्रथा।
1)    प्रतियोगिता परीक्षाओं द्वारा पेट पर लात पड़ने के बाद कॉंट्रैक्टरी प्रथा ने आमदनी के नए द्वार खोले:
a.     नौकरी देने के वक्त घूस
b.    कॉंट्रैक्टर के द्वारा हर महीने के कुल वेतन से मिलने वाला हिस्सा
c.     बाद में नियमित करते वक्त प्राप्त होने वाली मोटी घूस। हालाँकि सुप्रिम कोर्ट के कई निर्णयों के बाद इन कॉंट्रैक्ट कर्मचारियों के नियमित करने की परिपाटी में कमी आई है।
2)    कॉंट्रैक्टरी प्रथा आरक्षण से आने वाले दलित और पिछड़ी जाति के कर्मचारियों को दूर रखने का ज़रिया भी बना। हालाँकि नियमित करते वक्त आरक्षण के नियमों का  पालन करना अनिवार्य होता है (जिसको विशेष चयन परीक्षा के माध्यम से भरा जाता है )।  परन्तु तब तक सरकारी कार्यालयों से आरक्षित उम्मीदवारों को कॉंट्रैक्टरी प्रथा के हथियार के इस्तेमाल से दूर रखा जाता है।
3)    कॉंट्रैक्ट कर्मचारियों के माध्यम से सरकार भी बहुत पैसा बचा पा रही है क्यों कि इनका वेतन भी कम होता है और सरकार के सर पर रिटायरमेंट के बाद का कोई आर्थिक बोझ भी नहीं रहता। परंतु क्या मेधाशून्य लोगों को जनसेवा के कार्यों में लगा कर सरकार जनता का अपकार नहीं कर रही है? क्या देश की जनता को कुछ अधिक पैसे खर्च कर बेहतर सेवा नहीं देनी चाहिए?
4)    किसी के अहसान की बदौलत आने वाले कर्मचारी जीहुजुरी करते थे, और करते भी क्यों नहीं , यही तो वह गुण है जिसकी बदौलत वह अपने मेधा की शून्यता को छिपा सकते थे । प्रतियोगिता परीक्षाओं से आने वाले कर्मचारी मेहनती और स्वाभीमानी होते हैं। अपने अहम को तेल लगाने वाले लोगों की कमी सरकारी अधिकारियों को जल्द ही खलने लगी और उसका परिणाम था कॉंट्रैक्ट प्रथा। कॉंट्रैक्टरी प्रथा द्वारा आने वाले कर्मचारी नियमित होने के लालच में अफसरों के व्यक्तिगत काम भी करते हुए मिल जाते हैं।
5)    अगर आप सोंच रहे हैं कि कॉंट्रैक्ट कर्मचारी बड़े ही निरिह और आज्ञाकारी होते हैं तो उन लोगों से पूछे जिन्होंने इनको नियमित होने के बाद काम करते देखा है। वे आपको बता देंगे कि ये सामान्य नियमित कर्मचारियों से ज्यादा ऐंठन वाले हो जाते हैं।

जो लोग कॉंट्रैक्ट कर्मचारियों को मानवीय आधार पर नियमित करने की बात करते हैं वे सड़क पर बेरोज़गार घूम रहे मेधावी नव युवकों के साथ अन्याय कर रहे हैं जिनका उस पद पर पहला अधिकार है। कॉंट्रैक्ट प्रथा में काम कर रहे कर्मचारियों के पुनर्वास के लिए ज्यादा से ज्यादा उनके अनुभव के आधार पर प्रतियोगिता परिक्षाओं में उम्र में छूट दी जा सकती है पर कोई भी सरकार जो इन कॉंट्रैक्ट कर्मचारियों को येन केन प्रकारेण नियमित करने की बात करती है, भ्रष्टाचार विरोधी नहीं कही जा सकती है।



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